Panchayat Season 4 Review: प्रधानी चुनाव के साथ आई राजनीति की फुल डोज, लेकिन इस बार कॉमेडी थोड़ी कमजोर

Panchayat Season 4 Review: दर्शकों के लिए कंफर्ट शो बन चुका 'पंचायत' का सीजन 4 रिलीज हो चुका है। इस बार फुलेरा गांव की प्रधान मंजू देवी की गद्दी खतरे में है। बनारस की रहने वाली क्रांति देवी उन्हें प्रधानी चुनाव में सीधी टक्कर दे रही हैं। देखना यह है कि क्रांति और मंजू में से चुनावी जंग में कौन बाजी मारता है।

Youth Jagran
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Panchayat Season 4

Panchayat Season 4 Review: 2020 में अमेज़न प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) पर आई वेब सीरीज (web series) ‘पंचायत’ (Panchayat) ने कोरोना (Corona) के काले दौर में हम सभी का खूब मनोरंजन किया। उन दिनों यह शो देशभर के लोगों का पसंदीदा बन गया और अब तक बना हुआ है। शो के चाहने वाले चाहते हैं कि यह ताउम्र चलता रहे। अब मेकर्स ने इसे कितने सीजन तक बनाने का सोचा है यह तो पता नहीं, लेकिन दर्शकों के लिए कंफर्ट शो बन चुका ‘पंचायत’ का सीजन 4 जरूर रिलीज हो चुका है। इस बार फुलेरा गांव की प्रधान मंजू देवी (नीना गुप्ता) की गद्दी खतरे में है। बनारस (दुर्गेश कुमार) की पत्नी क्रांति देवी (सुनीता राजवार) उन्हें प्रधानी चुनाव में सीधी टक्कर दे रही हैं। ऐसे में देखना यह है कि क्रांति और मंजू में से कौन चुनावी जंग में बाजी मारता है।

क्या है कहानी?
‘पंचायत’ सीजन 4 की शुरुआत वहीं से होती है, जहां सीजन 3 खत्म हुआ था। प्रधान जी (रघुबीर यादव) को गोली लगी, जो उनके कंधे पर लगी। अब उनके कंधे का घाव तो ठीक हो गया है, लेकिन उनके अंदर का दर्द और डर अभी भी बरकरार है। वहीं, सचिव जी (जितेंद्र कुमार) के नाम पर केस दर्ज हो गया है। विधायक (प्रकाश झा) से मारपीट करने के बदले में उन्हें यह केस तोहफे में मिला है। उन्हें अपनी कैट परीक्षा के रिजल्ट का भी इंतजार है। इस बीच फुलेरा में चुनावी माहौल गरमा गया है। बनारका, क्रांति देवी, बिनोद (अशोक पाठक) और माधव (बुल्लू कुमार) गिद्धों की तरह प्रधानजी और पार्टी पर नज़र रखे हुए हैं। विधायक भी इन चारों का पुरज़ोर समर्थन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर प्रधानजी किसी शुभचिंतक के संरक्षण में हैं, जिसकी उन्हें अभी तक जानकारी नहीं है।


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चुनावी जंग मजेदार है, लेकिन…
शो की शुरुआत धीमी है, लेकिन जैसे-जैसे यह आगे बढ़ता है, आपको राजनीति का रंग देखने को मिलता है। प्रधानजी और मंजू देवी, सचिव जी, रिंकी (संविका), विकास (चंदन रॉय) और प्रहलाद चा (फैसल मलिक) जो भी करने की कोशिश करते हैं, बनराका और कंपनी उनके पीछे पड़ जाती है। बनराका और उसके साथियों ने प्रधानजी और उनकी टीम का खून चूस लिया है। उनका नारा है ‘करौंदा कुकर में पकाना’ और ऐसा करने के लिए वे आग में घी डालने और खूब मेहनत करने में लगे हैं। प्रधान और उसके साथियों की बुरी हालत देखकर एक बारगी आपको भी दुख होने लगता है। भूषण और क्रांति जब भी मुंह खोलते हैं, तो आपको लगता है कि बल्ले से उनका मुंह तोड़ दिया जाए।

मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच चल रही चुनावी जंग देखने में मजेदार तो है, लेकिन बोरिंग भी है। अगर आपको ‘पंचायत’ का सीजन 3 याद है, तो वह काफी उथला था। इस सीजन में भी यही दिक्कत नजर आती है। नए सीजन की कहानी चुनाव, उसकी गर्माहट और खींचतान के इर्द-गिर्द बुनी गई है। हालांकि, आपको उससे आगे कुछ नहीं मिलता। प्रधानजी को किसने गोली मारी, इसका जवाब मांगा जा रहा है। जवाब मिलने के बाद भी बात पूरी नहीं होती।

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सेक्रेटरी और रिंकी के बीच प्यार पिछले सीजन की तुलना में बस एक कदम आगे बढ़ा है। और यहां हम सोच रहे थे कि दोनों का रोमांस देखने को मिलेगा। शो में कुछ नए किरदार आए हैं, लेकिन वे कुछ पलों के मेहमान ही हैं। मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच की लड़ाई ही आपको सीरीज से बांधे रखती है और आपके मन में अलग-अलग भावनाएं जगाती है। बाकी चीजें बस यूं ही होती नजर आती हैं। कुछ शुरुआती सीक्वेंस देखने के बाद आपको समझ में आ जाता है कि शो का पैटर्न क्या है और यहीं से सीरीज़ प्रेडिक्टेबल हो जाती है।

जितेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, दुर्गेश कुमार, सुनीता राजवार, प्रकाश झा, संविका, चंदन रॉय, फैजल मलिक सभी अपने किरदारों में डूबे हुए हैं। इन्हें देखना आपको वही मज़ा और सुकून देता है जो आपको पहले के सीज़न देखने के बाद मिला था। बिनोद का किरदार निभाने वाले अशोक पाठक ने पूरी सीरीज़ में बेहतरीन काम किया है। अशोक ने जिस तरह से आखिरी एपिसोड में बिनोद के अलग-अलग इमोशन दिखाए हैं, वो काबिले तारीफ़ है। सीरीज़ के बाकी हिस्से में पहले जैसा ही सार है, साफ-सुथरी कॉमेडी और राजनीति। हालांकि, इस बार मज़ा कम और राजनीति ज़्यादा है।

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