Madhubani Apple Farming: कश्मीरी-हिमाचली (Kashmiri-Himachali) सेब (Apple) के साथ अब देश की एक बड़ी आबादी के पास बाजारों में बिहार का मधुबनी सेब खरीदने का विकल्प होगा। इसके लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। जल्द ही बाजारों में बिहार का सेब भी बिकता नजर आएगा।
दरअसल, मधुबनी (Madhubani) जिले के हरलाखी प्रखंड क्षेत्र के पिपरौन-परसा गांव (Pipraon-Parsa village of Harlakhi block area) में अब सेब की खेती शुरू हो गई है। सेब जैसे फलों के लिए प्रतिकूल वातावरण के बावजूद युवा किसानों ने चुनौतीपूर्ण कृषि की राह आसान कर ली है और नेपाल सीमा क्षेत्र में सेब के अलावा संतरा, अंजीर आदि मौसमी फल उगा रहे हैं।
युवा किसान राजीव रंजन करीब 5 एकड़ में सिर्फ फलों की खेती कर रहे हैं। इन्हें देखकर क्षेत्र के कई किसानों ने आत्मनिर्भर भारत की राह पकड़ी है और कृषि को स्वरोजगार का जरिया बनाया है। यहां के दर्जनों युवा किसान इंजीनियर राजीव कुमार, डॉ संतोष सिंह, रामप्रकाश, राजेंद्र महतो, चंदन सिंह आदि सेब की खेती कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि प्रशिक्षित युवा किसानों की देखरेख में खेतों में उन्नत किस्म के सेब उग रहे हैं। अच्छी पैदावार भी हो रही है, जिसे जल्द ही बाजारों में बेचा जाएगा। इस क्षेत्र में प्रतिकूल मौसम के बावजूद युवाओं की मेहनत और सच्ची लगन से सेब की अच्छी खेती से क्षेत्र के अन्य किसान भी प्रेरित हो रहे हैं।
स्थानीय किसान शिवेंद्र झा, विनय कामत, मुस्ताक, डॉ नरेश यादव आदि ने बताया कि मधुबनी में भारत-नेपाल सीमा (india nepal border) पर पहली बार सेब की खेती देखकर वे आश्चर्यचकित और प्रेरित हैं। मेहनत और सच्ची लगन से पत्थरों पर भी फूल उगाए जा सकते हैं। यहां सेब की अच्छी पैदावार होने से किसान काफी खुश हैं। युवा किसानों ने यहां हरिमन 99 किस्म के पौधे उपलब्ध कराए हैं। इस किस्म के एक सेब के पौधे की कीमत लगभग 200 रुपये है। इस किस्म की खासियतों की बात करें तो हरिमन 99 के पौधे की कटाई 40 से 45 डिग्री तापमान पर भी आसानी से की जा सकती है।
इस किस्म के पौधे लगाने के 3 साल बाद फल बनना शुरू हो जाता है। इस किस्म के एक फल का वजन 300 ग्राम तक होता है। इस किस्म के पौधे को 15 नवंबर से 15 फरवरी तक खेत में लगाया जा सकता है। मई और जून में फल आने शुरू हो जाते हैं। 5 साल बाद इसमें ज्यादा फल लगते हैं।
सेब (Apple) की खेती करने वाले किसानों के पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। जिस जगह खेती हो रही है, वहां तक वाहन ले जाने की सुविधा नहीं है। खेत में बिजली से सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं है। किसान अभी मोटर और पंपिंग सेट से सिंचाई करते हैं। जिसमें खर्च ज्यादा आता है।
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