Chanakya Niti: आज का दौर प्रतिस्पर्धा (competition) का है। लोग सफलता पाने के लिए पढ़ाई और ज्ञान (study and gain knowledge) हासिल करने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन कई बार उन्हें सफलता नहीं मिल पाती। इसका मुख्य कारण यह है कि लोगों को ज्ञान हासिल करने का सही तरीका नहीं पता। ऐसे में अगर कोई छात्र आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) के बताए रास्ते पर चले तो सफलता मिलने के साथ-साथ वह अनुशासित और दूसरों से बेहतर इंसान भी बनेगा। लेकिन आचार्य चाणक्य के इन सिद्धांतों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आइए जानते हैं चाणक्य नीति के अनुसार कैसे करें पढ़ाई।
पढ़ाई के लिए सही समय का चुनाव
आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) का मानना था कि शिक्षा शांत वातावरण में और एकाग्र मन से हासिल करनी चाहिए। वे कहते हैं- “विद्या विवदया धनं मदया, शक्ति परेषां परिपीडनाय।” इसका मतलब है कि सही उद्देश्य और सही समय पर हासिल किया गया ज्ञान ही सार्थक होता है। आचार्य चाणक्य के अनुसार सुबह का समय (ब्रह्म मुहूर्त) पढ़ाई के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। क्योंकि उस समय हमारा मन शांत होता है। जिससे ध्यान केंद्रित करना आसान होता है।
मन की एकाग्रता सबसे बड़ा धन है
ज्ञान केवल किताबों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। आचार्य चाणक्य भी यही मानते थे। उन्होंने साफ कहा कि शिक्षा केवल किताबों से नहीं बल्कि मन की एकाग्रता से प्राप्त होती है। उन्होंने कहा है- “एकोऽपि गुणः श्लघ्यः किं बहुं दोषदुषितां।” अर्थात यदि मन एकाग्र है तो वह व्यक्ति हजारों में सर्वश्रेष्ठ हो सकता है। इसलिए पढ़ाई करते समय मोबाइल, (Mobile) सोशल मीडिया (Social Media) और अन्य ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूरी बनाए रखना जरूरी है।
निरंतर अभ्यास और धैर्य ही सफलता की कुंजी है
आचार्य चाणक्य कहते हैं- “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।” इसका मतलब यह है कि ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र चीज नहीं है और निरंतर अभ्यास से ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उनका साफ मानना था कि पढ़ाई में कोई शॉर्टकट नहीं है। रोजाना थोड़ी-थोड़ी मेहनत करके ही स्थायी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
परिणामों पर नहीं, लक्ष्य पर ध्यान दें
चाणक्य नीति के अनुसार विद्यार्थियों को केवल परीक्षा पास करने के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के विकास के लिए अध्ययन करना चाहिए। वे कहते हैं- “कार्यसिद्धिः सततं मुख्या न लभ्यते सुखेन वै।” इसका अर्थ है कि महान कार्य केवल कठिन परिश्रम से ही संपन्न होते हैं। इसके लिए आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि सुख-सुविधा से ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
संयम और अनुशासन बनाए रखें
आचार्य चाणक्य का मानना था कि विद्यार्थी जीवन तपस्या का समय होता है। इसके लिए संयम और अनुशासन दोनों ही आवश्यक हैं। वे कहते हैं- “वासना को दूर करो, अपने स्वभाव को सुधारो और समय का सदुपयोग करो।” इसका अर्थ है कि उन्हें अध्ययन को ही अपने जीवन का धर्म मानना चाहिए और खुद को बाधाओं से दूर रखना चाहिए।
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